Jannatul Baqi before Destruction

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Jannatul Baqi after Destruction

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सऊदी सरकार और वहाबी कठ्मुल्लाओं के हाथों इस्लामी धरोहरों की तबाही ( जन्नतुल बक़ी )

इतिहास केवल इतिहास की पुस्तकों  तक सीमित नहीं है बल्कि इसको किसी भी देश की एतिहासिक इमारतों और स्थानों पर भी देखा जा सकता है। इमारतें , प्राचीन क़ब्रिस्तान, हज़ारों वर्ष पुराने गुंबद और स्तंभ भी लिखित इतिहास की भांति महत्वपूर्ण हैं बल्कि इनका महत्व पुस्तकों से भी अधिक है। कुछ समय से सऊदी अरब में इस्लाम का जीवित व सदृश्य इतिहास जो ईश्वरीय धर्म इस्लाम की महा सांस्कृतिक धरोहर समझा जाता है, बर्बाद हो रहा है और सऊदी सरकार तथा वहाबी कठमुल्ला, मुसलमानों की इन एहतिहासिक धरोहरों को मिटा रही हैं। बहुत से लोगों का मानना है कि सऊदी अरब के अधिकारी मक्के और मदीने में तीर्थयात्रियों की गुंजाइश बढ़ाने के उद्देश्य से मस्जिदुन्नबी और मस्जिदुल हराम को बढ़ा रहे है लेकिन इसमें वह इस बात का ध्यान नही रख रहें है कि एतिहासिक मह्तव वाले स्थानों को सही रखा जाए। लेबनान के दावते इस्लामी कालेज के प्रमुख शैख़ अब्दुन्नासिर अलजबरी ने इस संबंध में अलआलम टीवी चैनल से बात करते हुए कहा कि जब हम पवित्र नगर मदीने में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के रौज़े का दर्शन करते हैं तो हम देखते हैं कि खोखले कार्टूनों की भांति लंबी लंबी इमारतों से रौज़े को घेर दिया गया है और अपार अध्यात्मिक गुणों से संपन्न उन पवित्र स्थलों के अस्तित्व को मिटा दिया गया है जिनके माध्यम से हम पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र चरित्र और व्यवहार तथा पवित्र क़ुरआन की आयतों को प्राप्त कर सकते हैं।
 वहाबी आस्था रखने वाली सऊदी अरब की सरकार अपने गठन के आरंभ से ही विभिन्न बहानों से धार्मिक स्थलों की पवित्रता की अनदेखी करती आ रही है। बहाबियों ने धर्म में नयी बातों के प्रविष्ट होने और अंधविश्वास से संघर्ष के बहाने अब तक पवित्र नगर मक्के और मदीने नगर में बहुत सी ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहरों को बर्बाद किया है। इस्लामी धरोहरों के विशेषज्ञ सामी ओजावी का मानना है कि कुछ समय बाद मक्के में प्राचीन इतिहास का कोई भी धरोहर दिखाई नहीं पड़ेगी। हालिया 50 वर्षो के दौरान मक्के और मदीने में वहाबी कठ्मुल्लाओं द्वारा 300 से अधिक धार्मिक और ऐतिहासिक इमारतों को ध्वस्त किया जा चुका है। इन धरोहरों को बर्बाद करने वाले पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम से संबंधित धरोहरों को मिटाने में भीसंकोच नहीं करते। धर्मभ्रष्ट वहाबी कठ्मुल्लाओं का मानना है कि यदि यह इमारतें बाक़ी रहीं तो संभव है कि दूसरे देशों के मुसलमानों द्वारा इनका सम्मान किया जाने लगे और यह कार्य उनकी दृष्टि में मूर्तिपूजा और ईश्वर के अतिरिक्ति किसी और की उपासना करने के समान है। जबकि यह केवल एक धर्मोंमादी गुट अर्थात वहाबियों की आस्था है और मुसलमान अपना यह दायित्व समझते हैं कि वह अपने प्यारे पैग़म्बर और अन्य हस्तियों का जिन्होंने इस्लाम धर्म को आगे बढ़ाने और स्थापित करने के लिए बहुत कठिनाईयां सहन कीं और अध्यात्म के श्रेष्ठ स्थानों पर हैं, सम्मान करें। सऊद परिवार की सरकार ने जहां भी पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम और उनके प्रिय परिजनों और उनके साथियों से संबंधित कोई भी ऐतिहासिक धरोहर बच गये और वह घर जो पैग़म्बरे इस्लाम और उनके प्रिय परिजनों के साधारण और अध्यात्म से पूर्ण जीवन की निशानी थे, सभी को अतार्किक और निराधार बहानों से ध्वस्त कर दिया।
 शिया और सुन्नी दोनों ही समुदायों ने बहुत से इस्लामी इतिहासों का हवाला दिया है जिनके आधार पर ईश्वर के पवित्र घर काबे के सम्मान और उसके वैभव की सुरक्षा के लिए मस्जिदुल हराम के आस पास उससे ऊंची इमारतों का निर्माण सही नही है। कुछ वर्षों पूर्व तक मस्जिदुल हराम के प्रांगड़ से मिली हुई बड़ी इमारत सऊदी अरब के पूर्व नरेश मलिक फ़हद का महल था किन्तु हालिया दिनों में सऊदी परिवार ने और भी लंबा पैर फैला दिया है और वह मस्जिदुल हराम के निकट घंटाघर या क्लाक टावर के नाम से सबसे ऊंची इमारत का उद्धाटन करने वाले हैं। इस टावर के ऊपरी भाग में घड़ी लगी होगी और छोटे छोटे टावर उसके इर्द गिर्द बने होंगे। 11 जनवरी वर्ष 2012 को इसका उद्घाटन किया जाएगा। पश्चिमी इंजीनियरों की निगरानी में निर्माण होने वाले इस टावर में तीन हज़ार कमरों पर आधारित लगभग तीन भव्य होटल होंगे। इस टावर के निर्माण में तीन अरब डालर का ख़र्चा आएगा और इसमें मौजूद होटल बहुत ही सुन्दर और भव्य होंगे जिनके निकट पूंजीपति और धनवान व्यक्ति के अतिरिक्त कोई दूसरा फटक भी नहीं सकता।
यह शाहख़र्ची इस सीमा तक बढ़ गयी कि सऊदी अरब के पूर्व नरेश की पुत्री बसमा बिन्ते सऊद ने भी इसका विरोध किया है। वह घंटाघर की योजना में एक बड़े घोटाले का रहस्योद्घाटन करती हुई कहती हैं कि मस्जिदुल हराम के विस्तार और विश्व के सबसे बड़े घंटाघर के निर्माण की हालिया परियोजना में चालीस करोड़ डालर का घोटाला हुआ है किन्तु इस समाचार को सेन्सर कर दिया गया, यहां तक कि सऊदी नरेश भी चुप्पी साध गये और उन्होंने इस बारे में एक शब्द भी नहीं कहा। यह चालीस करोड़ डालर जापानी, फ़्रांसीसी, चीनी इत्यादि कंपनियों की जेबों में गये। बसमा सऊदी सरकार द्वारा इस घंटाघर के निर्माण के दूसरे आयामों की ओर संकेत करते हुए कहती हैं कि मक्के की गलियों में यदि हम देखें तो हमें बहुत सरलता से इतने अधिक निर्धन और दरिद्र लोग मिल जाएंगे कि जिनकी संख्यां पर हम विश्वास नहीं कर सकते, उनके पेट भी ख़ाली हैं जबकि हम घंटाघर, महल, विला इत्यादि के निर्माण को जारी रखे हुए हैं।
 सऊदी परिवार के प्रचारों के आधार पर विश्व के सबसे बड़े घंटाघर के निर्माण का औचित्य कि जिसके ऊपरी भाग में 43 बाई 45 मीटर की घड़ी लगी होगी, यह है कि जीएमटी अर्थात ग्रीनविच मीन टाईम के मुक़ाबले में मक्के की घड़ी समय के स्रोत में परिवर्तित हो। जबकि इस कार्य को अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के आधार पर होना चाहिए ताकि सभी लोग इसको स्वीकार करें या कम से कम इस्लामी देश ही इसे स्वीकार करें। आले सऊद इस बात पर गर्व कर रहे हैं कि यह घंटाघर रात में 17 किलोमीटर की दूरी से और दिन में 11 किलोमीटर की दूरी से दिखाई देगा किन्तु उन्होंने इस बात का विवरण नहीं दिया कि इस घंटाघर का निर्माण मस्जिदुल हराम में और काबे के निकट ही करना क्यों आवश्यक है और क्या यह मस्जिदुर हराम का अपमान नही है।
 पवित्र स्थलों का विस्तार और उसे सजाना संवारना कभी भी बुरा कार्य नहीं है किन्तु इस शर्त के साथ कि इस्लामी और ऐतिहासिक धरोहर इसके बहाने ध्वस्त न की जाएं और इनका अपमान न किया जाए। मस्जिदुल हराम के भी विस्तार की योजना बन रही है और समय के बीतने के साथ साथ, नई इमारतों के निर्माण व विस्तार के विभिन्न कार्यक्रमों से प्राचीन धरोहर और मोहल्ले समाप्त हो जाएंगे। मस्जिदुल हराम के क्षेत्र में पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के घर, अरक़म नामक गृह जो रसूले इस्लाम के प्रचार का स्थल था, हज़रत अली अलैहिस्सलाम का जीवन स्थल, सयदु शोहदा हज़रत हमज़ा का जन्म स्थल और इस प्रकार के बहुत से पवित्र स्थल जिनमें से प्रत्येक इस्लामी इतिहास को बयान करने वाले और इस्लामी निशानियों में से थे, दिखाई ही नहीं पड़ते।
मदीना नगर की इस्लामी धरोहरें भी आले सऊद और वहाबियों की उपस्थिति के आरंभ से ही ध्वस्त की जाती रही हैं। विध्वंस की सबसे भयानक और सबसे भयावह त्रासदी बक़ीअ नामक क़ब्रिस्तान का ध्वस्त किया जाना थी। जन्नतुल बक़ीअ में पैग़म्बरे इस्लाम के माता पिता, उनके चार पौत्रों और बहुत से साथियों और महापुरुषों के पवित्र पार्थिव शरीर दफ़्न हैं। वर्ष 1926 में वहाबियों ने इस क़ब्रिस्तान को ध्वस्त कर दिया था। वहाबियों ने विभिन्न धरोहरों और गुंबदों को ध्वस्त कर दिया और मूल्यवान चीज़ों को लूट लिया। मदीना नगर के अन्य प्रतीकों में से बनी हाशिम का मोहल्ला था जो मस्जिदुन्नबी के निकट स्थित था, इस पवित्र मोहल्ले का भी अस्तित्व मिटा दिया गया है। यह मोहल्ला पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के प्रिय परिजनों के रहने के स्थान और अध्यात्मिक स्थल के रूप में विभिन्न कालों में सुरक्षित रहा, यहां तक कि इस मोहल्ले के कुछ घरों की मरम्मत भी करायी गयी किन्तु सऊदी अरब पर आले सऊद के वर्चस्व के समय बनी हाशिम का मोहल्ला धीरे धीरे बर्बाद होने लगा यहां तक कि वर्ष 1985 से 1987 तक सऊदी सरकार ने मस्जिदुन्नबी के विस्तार के बहाने इस मोहल्ले की समस्त ऐतिहासिक निशानियों व धरोहरों को पूर्ण रूप से ध्वस्त कर दिया।
 सऊदी अरब से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र ओकाज़ ने भी हालिया दिनों में अपनी रिपोर्ट में धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरों पर सऊदी अधिकारियों की अनदेखी पर आपत्ति जताई। इस समाचार पत्र की रिपोर्ट में हज़रते हमज़ा की मस्जिद की चिंताजनक स्थिति की ओर संकेत किया गया है। यह समाचार पत्र आगे लिखता है कि नगर पालिका ने लोगों के विश्राम के लिए न तो कुर्सियां लगवाई और न ही वृक्ष लगवाए और न ही छायादार छतरी लगवाई, इसी प्रकार ओहद के ऐतिहासिक पर्वत पर चढ़ने के लिए पत्थर की सीढ़ीयां भी नहीं लगाई गयी है। इसके कारण ओहद के पर्वत की ऐतिहासिक निशानियां धीरे धीरे ख़राब हो रही हैं। सऊदी सरकार अपने प्रचारों में यह दिखाने का प्रयास करती है कि वह मस्जिदुल हराम और मस्जिदुन्नबी पर विशेष ध्यान देती है जबकि अन्य धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। इस संबंध में दूसरा प्रमाण, जबले नूर, ग़ारे हिरा, हज़रत अबूतालिब के क़ब्रिस्तान और अन्य स्थलों की अनदेखी है। पवित्र स्थलों को ध्वस्त करना या उनकी देखभाल न करना इस सीमा तक बढ़ गया है कि लंदन विश्वविद्यालय के अफ़्रीक़ी व पूर्वी धरोहर के संकाय में इस्लामी धरोहर व कला के विशेषज्ञ जेफ़री किंग इस बारे में कहते हैं कि सऊदी अरब में इस्लामी धरोहरों और स्थलों का भविष्य बहुत दुःखद है। इससे संबंधित अधिकारी इन प्राचीन और धार्मिक धरोहरों के ऐतिहासिक मूल्यों और महत्त्व को नहीं जानते इसीलिए वे इसके साथ इस प्रकार का व्यवहार करते हैं।
इस्लाम धर्म के उदय होने के आरंभ से अब तक मुसलमान किसी भी स्थिति में मक्के और मदीने की यात्रा करते हैं और पवित्र स्थलों विशेष ईश्वर के घर काबे के आध्यात्म व प्रकाश से लाभान्वित होते हैं। काबे की ओर जाने वाले समस्त तीर्थयात्रियों का मानना है कि ख़ानए काबा वैभव और विशेष आध्यात्म का स्वामी है और ऊंची ऊंची और भव्य इमारतों का निर्माण, मस्जिदुल हराम के प्रांगड़ में बने इस प्रकाशमयी घर के वैभव को कम नहीं कर सकता क्योंकि यह पवित्र स्थल ईश्वर के आदेश पर ईश्वर के दो महान दूतों हज़रत इब्राहीम व हज़रत इस्माईल के हाथों बना और यह ईश्वरीय संदेश वहि के उतरने का स्थान है। प्रत्येक दशा में सऊदी अरब में कुछ पवित्र स्थलों का ध्वस्त किया जाना जो इस्लाम के इतिहास का सदृश्य व सही दर्पण प्रस्तुत करता है और इसी प्रकार आर्थिक लाभ के लिए निरंकुश निर्माण कार्य जो मक्के और मदीने में पश्चिमी इंजीनियरों और विशेषज्ञों की निगरानी में किया जा रहा है, बहुत अधिक हानि का कारण बना है। इस प्रकार से कि धीरे धीरे मुसलमानों के यह दोनों पवित्र नगर अपनी विदित व इस्लामी पहचान को खोते जा रहे हैं और यूरोपीय वास्तुकला से संपन्न नगरों में परिवर्तित होते जा रहे हैं। इसीलिए विश्व के मुसलमान सऊदी अरब में अपने पवित्र व ऐतिहासिक स्थलों के प्रति चिंतित हैं और उनका यह मानना है कि सऊदी परिवार विश्वासघाती हैं और इन इस्लामी धरोहरों को सुरक्षित रखने के योग्य नहीं हैं

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