वहाबियत की आधारशिला रखने वाले
इब्ने तैमिया ने अपने पूरे जीवन में बहुत सी किताबें लिखीं और अपनी आस्थाओं
का अपनी रचनाओं में उल्लेख किया है। उन्होंने ऐसे अनेक फ़त्वे दिए जो उनसे
पहले के किसी भी मुसलमान धर्मगुरुओं ने नहीं दिए विशेष रूप से ईश्वर के
बारे में। वह्हाबियों का मानना है कि ईश्वर वैसा ही है जैसा कि क़ुरआन की
कुछ आयतों में उल्लेख है हालांकि ऐसी आयतों की क़ुरआन की दूसरी आयतें
व्याख्या करती हैं और पैग़म्बरे इस्लाम व उनके पवित्र परिजनों के कथनों से
भी ऐसी आयतों की तार्कपूर्ण व्याख्या की गयी है। किन्तु इब्ने तैमिया और
दूसरे सलफ़ी क़ुरआन की आयतों की विवेचना व स्पष्टीकरण से दूर रहे और इस
प्रकार ईश्वर के अंग तथा उसके लिए परिसिमा को मानने लगे।
इब्ने तैमिया और उनके प्रसिद्ध
शिष्य इब्ने क़य्यिम जौज़ी ने अपनी किताबों में इस बिन्दु पर बल दिया है कि
ईश्वर सृष्टि की रचना करने से पूर्व ऐसे घने बादलों के बीच में था कि
जिसके ऊपर और न ही नीचे हवा थी, संसार में कोई भी वस्तु मौजूद नहीं थी और
ईश्वर का अर्श अर्थात ईश्वर की परम सत्ता का प्रतीक विशेष स्थान पानी के
ऊपर था।
इस बात में ही विरोधाभास मौजूद
है। क्योंकि एक ओर यह कहा जा रहा है कि ईश्वर इससे पहले कि किसी चीज़ को
पैदा करता, घने बादलों के बीच में था जबकि बादल स्वयं ईश्वर की रचना है।
इसलिए यह कैसे माना जा सकता है कि रचना अर्थात बादल रचनाकार से पहले सृष्टि
में मौजूद रहा है? क्या इस्लामी शिक्षाओं से अवगत एक मुसलमान इस बात को
मानेगा कि महान ईश्वर को ऐसे अस्तित्व की संज्ञा दी जाए जो ऐसी बेबस हो कि
घने बादलों में घिरी हो और बादल उस परम व अनन्य अस्तित्व का परिवेष्टन किए
हो? इस्लाम के अनुसार कोई भी वस्तु ईश्वर पर वर्चस्व नहीं जमा सकती क्योंकि
क़ुरआनी आयतों के अनुसार ईश्वर का हर वस्तु पर प्रभुत्व है और पूरी सृष्टि
उसके नियंत्रण में है। इब्ने तैमिया के विचारों का इस्लामी शिक्षाओं से
विरोधाभास पूर्णतः स्पष्ट है।
वह्हाबियों की आस्थाओं में एक
आस्था यह भी है कि ईश्वर किसी विशेष दिशा व स्थान में है। वह्हाबियों का
मानना है कि ईश्वर के शरीर के अतिरिक्त व्यवहारिक विशेषता भी है और शारीरिक
तथा बाह्य दृष्टि से भी आसमानों के ऊपर है। इबने तैमिया में अपनी किताब
मिन्हाजुस्सुन्नह में इस विषय का इस प्रकार उल्लेख किया हैः हवा, ज़मीन के
ऊपर है, बादल हवा के ऊपर है, आकाश, बादलों व धरती के ऊपर हैं और ईश्वर की
सत्ता का प्रतीक अर्श आकाशों के ऊपर है और ईश्वर इन सबके ऊपर है। इसी
प्रकार वे पूर्वाग्रह के साथ कहते हैः जो लोग यह मानते हैं कि ईश्वर दिखाई
देगा किन्तु ईश्वर के लिए दिशा को सही नहीं मानते उनकी बात बुद्धि की
दृष्टि से अस्वीकार्य है।
प्रश्न यह उठता है कि इब्ने
तैमिया का यह दृष्टिकोण क्या पवित्र क़ुरआन के सूरए बक़रा की आयत क्रमांक
पंद्रह से स्पष्ट रूप से विरुद्ध नहीं है जिसमें ईश्वर कह रहा हैः पूरब
पश्चिम ईश्वर का है तो जिस ओर चेहरा घुमाओगे ईश्वर वहां है। ईश्वर हर चीज़
पर छाया हुया व सर्वज्ञ है। और इसी प्रकार सूरए हदीद की आयत क्रमांक चार
में ईश्वर कह रहा हैः जहां भी हो वह तुम्हारे साथ है।
अब सूरए सजदा की इस आयत पर
ध्यान दीजिएः ,,,और फिर उसका संचालन अपने हाथ में लिया और उससे हटकर न तो
कोई तुम्हारा संरक्षक और न ही उसके मुक़ाबले में कोई सिफ़ारिश करने वाला
है।
सूरए हदीद की आयत क्रमांक 4 में ईश्वर कह रहा हैः फिर सृष्टि का संचालन संभाला और जो कुछ ज़मीन में प्रविष्ट करती है उसे जानता है।
और अब सूरए ताहा की आयत क्रमांक 5 पर ध्यान दीजिएः वही दयावान जिसके पास पूरी सृष्टि की सत्ता है।
वह्हाबी इन आयतों के विदित रूप
के आधार पर ईश्वर की सत्ता के प्रतीक के लिए विशेष रूप व आकार को गढ़ लिया
है कि जिसके सुनने पर शायद हंसी आ जाए। वह्हाबियों का मानना है कि ईश्वर का
भार बहुत अधिक है और वह अर्श पर बैठा है। इब्ने तैमिया कि जिसका सलफ़ी
अनुसरण करते हैं, अनेक किताबों में लिखा है कि ईश्वर अपने आकार की तुलना
में अर्श के हर ओर से अपनी चार अंगुली अधिक बड़ा है। इब्ने तैमिया कहते हैः
पवित्र ईश्वर अर्श के ऊपर है और उसका अर्श गुंबद जैसा है जो आकाशों के ऊपर
स्थित है और अर्श ईश्वर के अधिक भारी होने के कारण ऊंट की काठी भांति
आवाज़ निकालता है जो भारी सवार के कारण निकालता है।
इब्ने क़य्यिम जौज़ी जो इब्ने
तैमिया के शिष्य व उनके विचारों के प्रचारक तथा मोहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब
के पौत्र भी हैं, अपनी किताबों में ईश्वर का इस प्रकार उल्लेख किया है कि
सुनने वाले उसके बचपन की कलपनाएं याद आ जाती हैं। वे कहते हैः ईश्वर का
अर्श कि जिसकी चौड़ाई दो आकाशों के बीच की दूरी जितनी है, आठ भेड़े के ऊपर
है कि जिनके पैर के नाख़ुन से घुटने तक की दूरी भी दो आकाशों के बीच की
दूरी की भांति है। ये भेड़े एक समुद्र के ऊपर खड़े हैं कि जिसकी गहराई दो
आकाशों के बीच की दूरी की जितनी है और समुद्र सातवें आकाश पर स्थित है। ये
बातें ऐसी स्थिति में हैं कि न तो पवित्र क़ुरआन की आयतें, न पैग़म्बरे
इस्लाम और न ही उनके सदाचारी साथियों ने इस प्रकार की निराधार व अतार्किक
विशेषताओं का उल्लेख किया बल्कि उनका मानना है कि ईश्वर कैसा है इसका
उल्लेख असंभव है।
हर चीज़ से ईश्वर के
आवश्यकतामुक्त होने की आस्था धर्म व पवित्र क़ुरआन की महत्वपूर्ण शिक्षाओं
में है और पवित्र क़ुरआन की अनेक आयतों में इस विषय पर चर्चा की गयी है।
जैसा कि पवित्र क़ुरआन के सूरए बक़रा की आयत क्रमांक 263 में ईश्वर कह रहा
हैः ईश्वर आवश्यकतामुक्त और सहनशील है। इसी प्रकार सूरए बक़रा की आयत
क्रमांक 267 में हम पढ़ते हैः ईश्वर आवश्यकतामुक्त और सारी प्रशंसा उसी से
विशेष हैं।
पवित्र क़ुरआन की इन आयतों में
इस प्रकार के अर्थ को केवल चिंतन मनन द्वारा ही समझा जा सकता है। पवित्र
क़ुरआन मानव समाज को निरंतर तर्क का निमंत्रण देता है और दावा करने वालों
से कह रहा है कि यदि उनके पास अपनी बात की सत्यता का कोई तर्क है तो उसे
बयान करे।
उदाहरण स्वरूप तर्क की दृष्टि
से यह कैसे माना जा सकता है कि ईश्वर आठ भेड़ों पर सवार है। क्योंकि यदि
ईश्वर वास्तव में आठ भेड़ों पर सवार होगा तो उसे उनकी आवश्यकता होगी। जबकि
अनन्य ईश्वर पवित्र है इस त्रुटि से कि उसे किसी चीज़ की आवश्यकता पड़े।
इसी प्रकार इस भ्रष्ट विचार के आधार पर कि ईश्वर का अर्श आठ भेड़ों पर है,
यह निष्कर्श निकलेगा कि ये आठ भेड़ें भी जब से ईश्वर है और जब तक रहेगा,
मौजूद रहेंगी। जबकि ईश्वर सूरए हदीद की चौथी आयत में स्वयं को हर चीज़ से
पहले और हर चीज़ के बाद बाक़ी रहने वाला अस्तित्व कह रहा है और सलफ़ियों के
आठ भेड़ों सहित दूसरी कहानियों से संबंधित किसी बात का उल्लेख नहीं है।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहै अलैहे व आलेही व सल्लम ईश्वर की विशेषता के
संबंध में कहते हैः तू हर चीज़ से पहले था और तुझसे पहले कोई वस्तु नहीं थी
और तू सबके बाद भी है।
अर्श पर ईश्वर के होने का अर्थ
ईश्वर की सत्ता है जो पूरी सृष्टि पर छायी हुयी है और पूरे संसार का संचालन
उसके हाथ में है। अर्श से तात्पर्य यह है कि ईश्वर का पूरी सृष्टि पर
नियंत्रण और हर वस्तु पर उसका शासन है जो अनन्य ईश्वर के अभिमान के अनुरूप
है। इसलिए अर्श पर ईश्वर के होने का अर्थ सभी वस्तुओं चाहे आकाश या ज़मीन,
चाहे छोटी चाहे बड़ी चाहे महत्वपूर्ण और चाहे नगण्य हो सबका संचालन उसके
हाथ में है। परिणामस्वरूप ईश्वर हर चीज़ का पालनहार और इस दृष्टि से वह
अकेला है। रब्ब से अभिप्राय पालनहार और संचालक के सिवा कोई और अर्थ नहीं है
किन्तु सलफ़ी ईश्वर के अर्श की जो विशेषता बयान करते हैं वह न केवल यह कि
धार्मिक मानदंडों व बुद्धि से विरोधाभास रखता है बल्कि उसे बकवास के सिवा
और कुछ नहीं कहा जा सकता। सलफ़ी इसी प्रकार ईश्वर के अर्श से ऐसे खंबे
अभिप्राय लेते हैं कि यदि उनमें से एक न हो तो ईश्वर का अर्श ढह जाएगा और
ईश्वर उससे ज़मीन पर गिर पड़ेगा। हज़रत अली अलैहिस्सलाम जिन्हें पैग़म्बरे
इस्लाम ने अपने ज्ञान के नगर का द्वार कहा है, ईश्वर के अर्श की व्याख्या
इन शब्दों में करते हैः ईश्वर ने अर्श को अपनी सत्ता के प्रतीक के रूप में
बनाया है न कि अपने लिए कोई स्थान।
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hindi.irib.ir/2010-06-06-08-34-03/वहाबियत,-वास्तविकता-व-इतिहास
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