अफ़सोस!
बीती हुई सदी में 44 हिजरी 8 शव्वालुलमुकर्रम को आले सऊद ने बनी उमय्या व
बनी अब्बास के क़दम से क़दम मिलाते हुए ख़ानदाने नबुव्वत व इसमत के लाल व
गोहर की क़ब्रों को वीरान करके अपनी दुश्मनी का सबूत दिया जो सदियों से
उसके सीनों में थी। आज आले मुहम्मद की क़ब्रें बे छत व दीवार हैं जबकि उनके
सदके़ में मिलने वाली नेमतों से ये यहूदी नुमा सऊदी अपने महलों में मज़े
उड़ा रहे हैं। इस चोरी के बाद सीना ज़ोरी का यह आलम है कि चंद ज़मीर व क़लम
फ़रोश मुफ़ती अपने बे बुनियाद फ़त्वों की असास इन झूटी रिवायात को क़रार
देते हैं जो बनी उमय्या और शाम के टकसाल में बनी,बिकी और ख़रीदी गई हैं
‘‘हसबोना किताबल्लाह’’ की दावेदार क़ौम आज क़ुरआन के खुले अहकाम को छोड़ कर
अपनी काली करतूतों का जवाज़ नक़ली हदीसों के आग़ोश में तलाश कर रही है।
सितम
बालाये सितम ये कि उनके मुक़द्दस मज़ारों को तोड़ने के बाद अब इस ममलेकत
से छपने वाली किताबों में, बक़ीअ में दफ़न उन बुज़ुर्गाने इस्लाम के नाम का
भी जि़क्र नहीं होता, मुबादा कोई यह न पूछ ले कि फिर उनके रौज़े कहाँ गये।
सऊदी अरब में वज़ारते इस्लामीः
उमूर औक़ाफ़ व दावत व इर्शाद की जानिब से हुज्जाजे किराम के लिये छपने और
उनके दरमियान मुफ़्त तक़सीम होने वाले किताबचे ‘‘रहनुमाए हज व उमरा व
ज़्यारते मस्जिदे नबवी’’ (मुसन्निफ़: मुतअद्दि उलमाए किराम, उर्दू तर्जुमा
शेख़ मुहम्मद लुक़मान सलफ़ी1419हि0) की इबारत मुलाहज़ा होः
‘‘अहले
बक़ीअः हज़रत उसमान, शोहदाए ओहद और हज़रत हमज़ा रज़ी अल्लाहु अन्हुम की
क़ब्रों की ज़्यारत भी मसनून है... मदीना मुनव्वर में कोई दूसरी जगह या
मस्जिद नहीं है कि जिसकी ज़्यारत जाइज़ हो इसलिये अपने आपको तकलीफ़ में न
डालो और न ही कोई ऐसा काम करो जिसका कोई अज्र न मिले बल्कि उलटा गुनाह का
ख़तरा है।’’
यानी
इस किताब के लिखने वाले ‘‘उलमा’’ की निगाह में बक़ीअ में जनाबे
उसमान,शोहदाए ओहद और हज़रत हमज़ा की क़ब्रों के अलावा कोई और ज़्यारत गाह
नहीं है जबकि तारीख़े इस्लाम को पढ़ने वाला एक मामूली तालिबे इल्म भी यह
बात बख़ूबी जानता है कि इस क़ब्रिस्तान में आसमाने इल्म व इरफ़ान के ऐसे
आफ़ताब व माहताब दफ़न हैं जिनके नूर से आज तक कायनात मुनव्वर व रौशन है।
अब
ऐसे वक़्त में जबकि वहाबी मीडिया यह कोशिश कर रही है कि जन्नतुल बक़ीअ में
मदफ़ून, यज़दगाने इस्लाम के नाम को भी मिटाया जाये, ज़रूरी है कि तमाम
मुसलमानों की खि़दमत में मज़लूमों का तज़केरा किया जाये ताकि दुश्मन आनी
साजि़श में कामियाब न होने पाये, नीज़ यह भी वाज़ेह हो जाये कि इस्लाम की
वह कौन सी मायानाज़ इफ़तिख़ार हस्तियाँ हैं जिनके मज़ार को वहाबियों की कम
अक़ली व कज रवी ने वीरान कर दिया है लेकिन इस गुफ़त्गू से क़ब्ल एक बात
क़ाबिले जि़क्र है कि यह क़ब्रिस्तान पहले एक बाग़ था, अरबी ज़बान में इस
जगह का नाम ‘‘अलबक़ीअ अलग़रक़द’’ है, बक़ीअ यानी मुख़तलिफ़ दरख़्तों का
बाग़ और ग़रक़द एक मख़सूस कि़स्म के दरख़्त का नाम है चूंकि इस बाग़ में एक
तरह के दरख़्त ज़्यादा थे इस वजह से इसे बक़ीअ ग़रक़द कहते थे, इस बाग़
में चारों तरफ़ लोगों के घर थे जिनमें से एक घर जनाब अबुतालिब के फ़रज़न्दे
अक़ील का भी था जिसे ‘‘दारे अक़ील’’ कहते थे, बाद में जब लोगों ने अपने
मरहूमीन को इस बाग़ में अपने घरों के अन्दर दफ़न करना शुरू किया तो ‘‘दारे
अक़ील’’ पैग़म्बरे इस्लाम स॰ के ख़ानदान का क़ब्रिस्तान बना और मक़बरा
‘‘बनी हाशिम’’ कहलाया। रफ़ता रफ़ता पूरे बाग़ से दरख़्त कटते गये और
क़ब्रिस्तान बनता गया।
मक़बरा-ए-बनी हाशिम, जो एक शख़्सी मिलकियत है, उसी में आइम्मा अतहार अ॰ के
मज़ार थे जिनको वहाबियों ने मुन्हदिम कर दिया है। अफ़सोस तो उस वक़्त होता
है जब इस तारीख़ी हक़ीक़त के मुक़ाबले में इन्हेदामे बक़ीअ के बाद सऊदी
अरब से छपने वाले रिसाले‘‘उम्मुल क़ुरा’’ (शुमारा जमादीउस्सानिया 1345 हि0)
में इस ज़ालिमाना फि़रके़ के मुफ़ती व क़ाज़ी ‘‘इब्ने वलीद’’ का यह बयान
नज़रों से गुज़रता है कि ‘‘बक़ीअ मौक़ूफ़ा है और क़ब्रों पर बनी हुई
इमारतें क़ब्रिस्तान की ज़मीन से इस्तेफ़ादा करने से रोकती हैं।’’
न
जाने किस शरीअत ने साहिबाने मिलकियत की ज़मीन में बेजा दख़ालत और उसे
मौक़ूफ़ा क़रार देने का हक़ इस ज़र ख़रीद मुफ़ती को दे दिया।
इस
मुक़द्दस क़ब्रिस्तान में दफ़न होने वाले इस्लाम के बड़े रेहनुमा के तज़करे
से पहले यह बता देना ज़रूरी है कि बक़ीअ का एहतेराम फ़रीक़ैन के नज़दीक
साबित है और सब कल्मा पढ़ने वाले इस का एहतेराम करते हैं, इस सिलसिले में
फ़क़त एक रिवायत काफ़ी है‘‘उम्मे क़ैस बिन्त महसन का बयान है कि एक दफ़ा
में पैग़म्बर स॰ के हमराह बक़ीअ पहुँची तो आप स॰ ने फ़रमाया: इस
क़ब्रिस्तान से सत्तर हज़ार अफ़राद महशूर होंगे जो हिसाब व किताब के बग़ैर
जन्नत में जायेंगे, नीज़ उनके चेहरे चैधवी रात के चाँद के तरह चमक दमक रहे
होंगे।’’
ऐसे
फ़ज़ीलत वाले क़ब्रिस्तान में आलमे इस्लाम की ऐसी अज़ीमुशान शख़सियतें
आराम कर रही है जिनकी अज़मत व मंजि़लत को तमाम मुसलमान, मुत्तफ़ेक़ा तौर पर
क़ुबूल करते हैं। आइये देखें कि वे शख़सियतें कौन हैः
(1) इमाम हसन मुजतबा (अ॰)
आप
पैग़म्बरे अकरम स॰ के नवासे और हज़रत अली व फ़ात्मा के बड़े साहबज़ादे हैं।
मन्सबे इमामत के एतेबार से दूसरे इमाम और इसमत के लिहाज़ से चैथे मासूम
हैं। आपकी शहादत के बाद हज़रत इमाम हुसैन ने आपको पैग़म्बरे इस्लाम स॰ के
पहलू में दफ़न करना चाहा मगर जब एक सरकश गिरोह ने रास्ता रोका और तीर
बरसाये तो इमाम हुसैन ने आपको बक़ीअ में दादी की क़ब्र के पास दफ़न किया।
इस सिलसिले में इब्ने अब्दुल बर से रिवायत है कि जब ख़बर अबूहुरैरह को मिली
तो कहाः ‘‘ख़ुदा की क़सम यह सरासर ज़ुल्म है कि हसन अ॰ को बाप के पहलू में
दफ़न होने से रोका गया जबकि ख़ुदा की क़सम वह रिसालत मआब स॰ के फ़रजंद थे।
आपके मज़ार के सिलसिले में सातवीं हिजरी क़मरी का सय्याह इब्ने बतूता अपने
सफ़रनामे में लिखता है किः बक़ीअ में रसूले इस्लाम स॰ के चचा अब्बास इब्ने
अब्दुल मुत्तलिब और अबुतालिब के पोते हसन बिन अली अ॰ की क़ब्रें हैं जिनके
ऊपर सोने का कु़ब्बा है जो बक़ीअ के बाहर ही से दिखाई देता है। दोनों की
क़ब्रें ज़मीन से बुलंद हैं और नक़्शो निगार से सजे हैं। एक और सुन्नी
सय्याह रफ़त पाशा भी नक़्ल करता है कि अब्बास और हसन अ॰ की क़ब्रें एक ही
क़ुब्बे में हैं और यह बक़ीअ का सबसे बुलंद क़ुब्बा है। बतनूनी ने लिखा है
किः इमाम हसन अ॰ की ज़रीह चांदी की है और उस पर फ़ारसी में नक़्श हैं। मगर
आज आले सऊद अपनी नादानी के नतीजे में यह अज़ीम बारगाह और बुलंद व बाला
क़ुब्बा मुन्हदिम कर दिया गया है और इस इमाम की क़ब्रे मुतहर ज़ेरे आसमान
है।
(2) हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन सज्जाद (अ॰)
आपका नाम अली है और इमाम हुसैन अ॰ के बेटे हैं और शियों के चैथे इमाम हैं।
आपकी विलादत 38 हिजरी में हुई। आपके ज़माने के मशहूर सुन्नी मुहद्दिस व
फ़क़ीह मुहम्मद बिन मुस्लिम ज़हरी आपके बारे में कहते हैं किः मैंने क़ुरैश
में से किसी को आपसे बढ़कर परहेज़गार और बुलंद मर्तबा नहीं देखा यही नहीं
बल्कि कहते हैं किः दुनिया में सब से ज़्यादा मेरी गर्दन पर जिसका हक़ है
वो अली बिन हुसैन अ॰ की ज़ात है। आपकी शहादत 94 हि0 में25 मुहर्रमुलहराम को
हुई और बक़ीअ में चचा इमाम हसन अ॰ के पहलू में दफ़न किया गया। रफ़त पाशा
ने अपने सफ़रनामे में जि़क्र किया है कि इमाम हसन अ॰ के पहलू में एक और
क़ब्र है जो इमाम सज्जाद अ॰ की है जिसके ऊपर क़ुब्बा है मगर अफ़सोस 1344
में दुश्मनी की आंधी ने ग़ुरबा के इस आशयाने को भी न छोड़ा और आज इस अज़ीम
इमाम और अख़लाक़ के नमुने की क़ब्र वीरान है।
(3) हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़र (अ॰)
आप
रिसालत मआब के पांचवे जानशीन व वसी और इमाम सज्जाद अ॰ के बेटे हैं नीज़
इमाम हसन अ॰ के नवासे और इमाम हुसैन अ॰ के पोते हैं। 56 हि0 में विलादत और
शहादत हुई। वाक़-ए कर्बला में आपकी उमरे मुबारक चार साल की थी, इब्ने हजर
हेसमी (अलसवाइक़ अलमुहर्रिक़ा के मुसन्निफ़) का बयान है कि इमाम मुहम्मद
बाक़र अलै0 से इल्म व मआरिफ़, हक़ाइक़े अहकाम, हिकमत और लताइफ़ के ऐसे
चश्मे फूटे जिनका इनकार बे बसीरत या बदसीरत व बेबहरा इन्सान ही कर सकता है।
इसी वजह से यह कहा गया है कि आप इल्म को शिगाफ़ता करके उसे जमा करने वाले
हैं, यही नहीं बल्कि आप ही परचमे इल्म के आशकार व बुलंद करने वाले हैं। इसी
तरह अब्दुल्लाह इब्ने अता का बयान है कि मैंने इल्मे वफ़क़ा के मशहूर आलिम
हकम बिन उतबा (सुन्नी आलिमे दीन) को इमाम बाक़र के सामने इस तरह ज़ानुए
अदब तय करके आपसे इल्मी इस्तेफ़ादा करते हुए देखा जैसे कोई बच्चा किसी बहुत
अज़ीम उस्ताद के सामने बैठा हो।
आपकी अज़मत का अंदाज़ा इस वाकि़ये से बहुत अच्छी तरह लगाया जा सकता है कि
हज़रत रूसले अकरम स॰ ने जनाब जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी जैसे जलीलुक़दर
सहाबी से फ़रमाया था किः ऐ जाबिर अगर बाक़र अ॰ से मुलाक़ात हो तो मेरी तरफ़
से सलाम कहना। इसी वजस से जनाब जाबिर आपकी दस्तबोसी (हाथों को चूमना) में
फ़ख्र (गर्व) महसूस करते थे और ज़्यादातर मस्जिदे नबवी में बैठ कर
रिसालतपनाह की तरफ़ से सलाम पहुंचाने की फ़रमाइश का तज़करा करते थे।
आलमे इस्लाम बताऐ कि ऐसी अज़ीम शख़सियत की क़ब्र को वीरान करके आले सऊद ने
क्या किसी एक फि़रक़े का दिल तोड़ा है या तमाम मुसलमानों को तकलीफ़
पहुंचाई है।
(4) हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अ॰:
आप
इमाम मुहम्मद बाक़र अ॰ के फ़रज़न्दे अरजुमंद और शियों के छटे इमाम हैं।83
हिज0 में विलादत और 148 में शहादत हुई। आपके सिलसिले में हनफ़ी फि़रके़ के
पेशवा इमाम अबुहनीफ़ा का बयान है कि मैंने किसी को नहीं देखा कि किसी के
पास इमाम जाफ़र सादिक़ अ॰ से ज़्यादा इल्म हो। इसी तरह मालिकी फि़रक़े के
इमाम मालिक कहते हैं। किसी को इल्म व इबादत व तक़वे में इमाम जाफ़र सादिक़
अ॰ से बढ़ कर न तो किसी आँख ने देखा है और न किसी कान ने सुना है और न किसी
के ज़हन में यह बात आ सकती है। नीज़ आठवें क़र्न में लिखी जाने वाली किताब
‘‘अलसवाइक़ अलमुहर्रिक़ा’’ के मुसन्निफ़ ने लिखा है किः इमाम सादिक़ से इस
क़दर इलम सादिर (ज़ाहिर) हुए हैं कि लोगों की ज़बानों पर था यही नहीं
बल्कि बकि़या फि़रक़ों के पेशवा जैसे याहया बिन सईद, मालिक, सुफि़यान सूरी,
अबुहनीफ़ा वग़ैरा आपसे रिवायत नक्ल करते थे। महशहूर मोअर्रिख़ इब्ने
ख़लकान रक़्मतराज़ हैं कि मशहूर ज़मानाए शख़सियत और इल्मुल जबरा के मूजिद
जाबिर बिन हयान आपके शागिर्द थे।
मुसलमानों की इस अज़ीम हसती के मज़ार पर एक अज़ीमुश्शान रौज़ा व क़ुब्बा
था मगर अफ़सोस एक बे अक़्ल गिरोह की सरकशी के नतीजे में इस वारिसे पैग़म्बर
की लहद आज वीरान है।
(5) जनाबे फ़ात्मा बिन्ते असद
आप
हज़रत अली की माँ हैं और आप ही ने जनाबे रसूले ख़ुदा स॰ की वालिदा के
इन्तिक़ाल के बाद आँहज़रत स॰ की परवरिश फ़रमाई थी, जनाबे फ़ातिमा बिन्ते
असद को आपसे बेहद उनसियत व मुहब्बत थी और आप भी अपनी औलाद से ज़्यादा
रिसालत मआब का ख़याल रखती थीं। हिजरत के वक़्त हज़रत अली के साथ मक्का
तशरीफ़ लाईं और उम्र के आखि़र तक वहीं रहीं। आपके इन्तिक़ाल पर रिसालत मआब
को बहुत ज़्यादा दुख हुआ था और आपके कफ़न के लिये अपना कुर्ता इनायत
फ़रमाया था नीज़ दफ़न से क़ब्ल कुछ देर के लिए क़ब्र में लेटे थे और क़ुरआन
की तिलावत फ़रमाई थी, नमाज़े मय्यत पढ़ने के बाद आपने फ़रमाया थाः किसी भी
इन्सान को फि़शारे क़ब्र से निजात नहीं है सिवाए फ़ात्मा बिन्त असद के,
नीज़ आपने क़ब्र देख कर फ़रमाया थाः جزاکاللہ
आपका रसूले मक़बूल सल0 ने इतना एहतेराम फ़रमाया मगर आंहज़रत सल0 की उम्मत
ने आपकी तौहीन में कोई कसर उठा न रखी, यहां तक कि आपकी क़ब्र भी वीरान कर
दी। जिस क़ब्र में रसूल सल0 ने लेट कर आपको फि़शारे क़ब्र से बचाया था और
क़ुरआन की तिलावत फ़रमाई थी उस पर बिलडोज़र चलाया गया और निशाने क़ब्र को
भी मिटा दिया गया।
(6) जनाबे अब्बास इब्ने अब्दुल मुत्तलिब
आप
रसूले इस्लाम स॰ के चचा और मक्के के शरीफ़ और बुजर्ग लोगों में से थे,आपका
शुमार हज़रत पैग़म्बर स॰ के चाहने वालों और मद्द करने वालों, नीज़ आप स॰ के
बाद हज़रत अमीरूल मोमेनीन के वफ़ादारों और जाँनिसारों में होता है।
आमुलफ़ील से तीन साल पहले विलादत हुई और 33 हि0 में इन्तिक़ाल हुआ। आप
आलमे इस्लाम की अज़ीम शख़सियत हैं। माज़ी के सय्याहों ने आपके रौज़ा और
कु़ब्बा का तज़किरा किया है, मगर अफ़सोस आपके क़ुब्बे को मुन्हदिम कर दिया
गया और क़ब्र वीरान हो गई।
(7) जनाबे अक़ील इब्ने अबूतालिब अ॰
आप
हज़रत अली अ॰ के बड़े भाई थे और नबीए करीम स॰ आपको बहुत चाहते थे,अरब के
मशहूर नस्साब थे और आप ही ने हज़रत अमीर का अक़्द जनाब उम्मुल बनीन से
कराया था। इन्तिक़ाल के बाद आपके घर (दारूल अक़ील) में दफ़न किया गया,
जन्नतुल बक़ी को गिराने से पहले आप की क़ब्र ज़मीन से ऊँची थी। मगर
इन्हेदाम के बाद आपकी क़ब्र का निशान मिटा दिया गया है।
(8) जनाब अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र
आप
जनाब जाफ़र तैयार ज़लजिनाहैन के बड़े साहबज़ादे और इमाम अली अ॰ के दामाद
(जनाब ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के शौहर) थे। आपने दो बेटों मुहम्मद और औन को
कर्बला इसलिये भेजा था कि इमाम हुसैन अ॰ पर अपनी जान निसार कर सकें। आपका
इन्तिक़ाल 80 हि0 में हुआ और बक़ीअ में चचा अक़ील के पहलू में दफ़न किया
गया। इब्ने बतूता के सफ़रनामे में आपकी क़ब्र का जि़क्र है। सुन्नी आलिम
समहूदी ने लिखा हैः चूंकि आप बहुत सख़ी थे इस वजह से ख़ुदावंदे आलम ने आपकी
क़ब्र को लोगों की दुआयें मक़बूल होने की जगह क़रार दिया है। मगर अफ़सोस!
आज जनाब ज़ैनब के सुहाग के कब्र का निशान भी बाक़ी नहीं रहा।
(9) जनाब उम्मुल बनीन अ॰
आप
हज़रत अली अ॰ की बीवी और हज़रत अबुल फ़ज़्ल अब्बास अ॰ की माँ हैं,साहिबे
‘‘मआलिकुम मक्का वलमदीना’’ के मुताबिक़ आपका नाम फ़ात्मा था मगर सिर्फ़ इस
वजह से आपने अपना नाम बदल दिया कि मुबादा हज़रात हसन व हुसैन अ॰ को शहज़ादी
कौनेन अ॰ न याद आ जायें और तकलीफ़ पहुंचे। आप उन दो शहज़ादों से बेपनाह
मुहब्बत करती थीं। वाक़-ए कर्बला में आपके चार बेटों ने इमाम हुसैन अ॰ पर
अपनी जान निसार की है इन्तिक़ाल के बाद आपको बक़ीअ में रिसालत मआब स॰ की
फूपियों के बग़ल में दफ़न किया गया, यह क़ब्र मौजूदा क़ब्रिसतान की बाईं
जानिब वाली दीवार से मिली हूई है और ज़ायरीन यहाँ ज़्यादा तादाद में आते
हैं।
(10) जनाब सफि़या बिन्त अब्दुल मुत्तलिब
आप
रसूले इस्लाम स॰ की फूफी और अवाम बिन ख़ोलद की बीवी थीं, आप एक बहादुर और
शुजाअ ख़ातून थीं। एक जंग में जब बनी क़रेज़ा का एक यहूदी, मुसलमान औरतों
के साथ ज़्यादती के लिए खे़मों में घुस आया तो आपने हसान बिन साबित से उसको
क़त्ल करने के लिये कहा मगर जब उनकी हिम्मत न पड़ी तो आप ख़ुद बनफ़से
नफ़ीस उन्हीं पर हमला करके उसे क़त्ल कर दिया। आपका इन्तिक़ाल 20 हि0 में
हुआ। आपको बक़ीअ में मुग़य्यरा बिन शेबा के घर के पास दफ़न किया गया। पहले
यह जगह ‘‘बक़ीउल उम्मात’’ के नाम से मशहूर थी। मोअर्रेख़ीन और सय्याहों के
नक़्ल से मालूम होता है कि पहले क़ब्र की तखती ज़ाहिर थी मगर अब फ़क़त
निशाने क़ब्र बाक़ी बचा है।
(11) जनाब आतिका बिन्ते अब्दुलमुत्तलिब
आप
रूसलुल्लाह सल0 की फूफी थीं। आपका इन्तिक़ाल मदीना मुनव्वरा में हुआ और बहन
सफि़या के पहलू में दफ़न किया गया। रफ़त पाशा ने अपने सफ़रनामे में आपकी
क़ब्र का तजि़क्रा किया है मगर अब सिर्फ़ क़ब्र का निशान ही बाक़ी रह गया
है।
(12) जनाब हलीमा सादिया
आप
रसूले इस्लाम सल0 की रज़ाई माँ थीं यानी आप ने जनाबे हलीमा का दूध पिया था।
आपका ताल्लुक़ क़बीला साद बिन बकर से था। इन्तिक़ाल मदीने में हुआ और
बक़ीअ के शुमाल मशरिक़ी सिरे पर दफ़न हुईं। आपकी क़ब्र पर एक आलीशान
कु़ब्बा था। रिसालत मआब स॰ अकसर व बेशतर यहाँ आकर आपकी ज़्यारत फ़रमाते थे।
मगर अफ़सोस! साजि़श व तास्सुब के हाथों ने सय्यदुल मुरसलीन स॰ की इस महबूब
ज़्यारतगाह को भी न छोड़ा और क़ुब्बा को ज़मीन बोस करके क़ब्र का निशान
मिटा दिया गया।
(13) जनाब इब्राहीम बिन रसूलुल्लाह स॰
आपकी विलादत सातवीं हिजरी क़मरी में मदीना मुनव्वरा में हुई मगर सोलह
सत्तरह माह बाद ही आपका इन्तिक़ाल हो गया। इस मौक़े पर रसूल सल0 मक़बूल ने
फ़रमाया थाः इसको बक़ीअ में दफ़न करो, बेशक इसकी दूध पिलाने वाली जन्नत में
मौजूद है जो इसको दूध पिलायेगी। आपके दफ़न होने के बाद बक़ीअ के तमाम
दरख़तों को काट दिया गया और उसके बाद हर क़बीले ने अपनी जगह मख़सूस कर दी
जिससे यह बाग़ क़ब्रिस्तान बन गया। इब्ने बतूता के मुताबिक़ जनाब इब्राहीम
अलै0 की क़ब्र पर सफ़ेद गुंबद था। इसी तरह रफ़त पाशा ने भी क़ब्र पर
क़ुब्बे का जि़क्र किया है मगर अफ़सोस आले सऊद के जु़ल्म व सितम का नतीजा
यह है कि आपकी फ़क़त क़ब्र का निशान ही बाक़ी रह गया है।
(14) जनाब उसमान बिन मज़ऊन
आप
रिसालते मआब स॰ के बावफ़ा व बाअज़मत सहाबी थे। आपने उस वक़्त इस्लाम कु़बूल
किया था जब फ़क़त 13 आदमी मुसलमान थे। इस तरह आप कायनात के चैधवें मुसलमान
थे। आपने पहली हिजरत में अपने साहबज़ादे के साथ शिर्कत फ़रमाई फिर उसके
बाद मदीना मूनव्वरा भी हिजरत करके आये, जंगे बदर में भी शरीक थे, इबादत में
भी बेनज़ीर थे। आपका इन्तिक़ाल 2 हिजरी में हुआ। इस तरह आप पहले महाजिर
हैं जिनका इन्तिकलाल मदीना में हुआ। जनाब आयशा से मनक़ूल रिवायत के
मुताबिक़ हज़रत रसले इस्लाम स॰ ने आपकी मय्यत का बोसा लिया, नीज़ आप स॰
शिद्दत से गिरया फ़रमा रहे थे। आंहज़रत स॰ ने जनाब उसमान की क़ब्र पर एक
पत्थर लगाया गया था ताकि निशानी रहे मगर मरवान बिन हकम ने अपनी मदीने की
हुकूमत के ज़माने में उसको उखाड़ कर फेक दिया था जिस पर बनी उमय्या ने उसकी
बड़ी मज़म्मत की थी।
(15) जनाब इस्माईल बिन सादिक़
आप
इमाम सादिक़ अ॰ के बडे़ साहबज़ादे थे और आँहज़रत स॰ की जि़न्दगी ही में
आपका इन्तिक़ाल हो गया था। समहूदी ने लिखा है कि आपकी क़ब्र ज़मीन से काफ़ी
ऊँची थी। इसी तरह मोअत्तरी ने जि़क्र किया है कि जनाबे इस्माईल की क़ब्र
और उसके शुमाल का हिस्सा इमाम सज्जाद अ॰ का घर था जिसके कुछ हिस्से में
मस्जिद बनाई गई थी जिसका नाम मस्जिदे जै़नुल आबेदीन अ॰ था। मरातुल हरमैन के
मोअल्लिफ़ ने भी इस्माईल की क़ब्र पर क़ुब्बा का जि़क्र किया है। 1395 हि0
में जब सऊदी हुकूमत ने मदीने की शाही रास्तों को चैडा करना शुरू किया तो
आपकी क़ब्र खोद डाली मगर जब अन्दर से सही बदन निकला तो उसे बक़ी में शोहदाए
ओहद के शहीदों के क़रीब दफ़न किया गया।
(16) जनाब अबु सईद ख़ुज़री
रिसालत पनाह के जांनिसार और हज़रत अली अ॰ के आशिक़ व पैरू थे। मदीने में
इन्तिक़ाल हुआ और वसीयत की बिना पर बक़ीअ में दफ़न हुए। रफ़त पाशा ने अपने
सफ़रनामे में लिखा है कि आपकी क़ब्र की गिन्ती मारूफ़ क़ब्रों में होती है।
इमाम रज़ा ने मामून रशीद को इस्लाम की हक़ीक़त से मुताल्लिक़ जो ख़त लिखा
था उसमे जनाब अबुसईद ख़ुज़री को साबित क़दम और बाईमान क़रार देते हुए आपके
लिये रजि़अल्लाहु अन्हो व रिज़वानुल्लाहु अलैह के लफ़्ज़ इस्तेमाल किये थे।
(17) जनाब अब्दुल्लाह बिन मसऊद
आप
बुज़ुर्ग सहाबी और क़ुरआन मजीद के मशहूर क़ारी थे। आप हज़रत अली अ॰ के
मुख़लेसीन व जांनिसारों में से थे। आपको दूसरी खि़लाफ़त के ज़माने में नबीए
अकरम स॰ से अहादीस नक़्ल करने के जुर्म में गिरफ़तार किया गया था जिसकी
वजह से आपको अच्छा ख़ासा ज़माना जि़न्दान में गुज़ारना पड़ा। आपका
इन्तिक़ाल 33 हि0 में हुआ था। आपने वसीयत फ़रमाई थी कि जनाब उसमान बिन
मज़ऊन के पहलू में दफ़न किया जाये और कहा था कि: बेशक उसमान इब्ने मज़ऊन
फ़क़ी थे। रफ़त पाशा के सफ़रनामें में आपकी क़ब्र का जि़क्र है।
पैग़म्बर (स॰) की बीवियों की क़ब्रें
बक़ीअ में नीचे दी गई अज़वाज की क़बरें हैं
(18) ज़ैनब बिन्ते ख़ज़ीमा वफ़ात 4 हि0
(19) रेहाना बिन्ते ज़ैद वफ़ात 8 हि0
(20) मारिया क़बतिया वफ़ात 16 हि0
(21) ज़ैनब बिन्ते जहश वफ़ात 20 हि0
(22) उम्मे हबीबा वफ़ात 42 हि0 या 43 हि0
(23) मारिया क़बतिया वफ़ात 45 हि0
(24) सौदा बिन्ते ज़मा वफ़ात 50 हि0
(25) सफि़या बिन्ते हई वफ़ात 50 हि0
(26) जवेरिया बिन्ते हारिस वफ़ात 50 हि0
(27) उम्मे सलमा वफ़ात 61 हि0
ये क़बरें जनाबे अक़ील अ॰ की क़ब्र के क़रीब हैं। इब्ने बतूता के सफ़रनामे में रौज़े का जि़क्र है। मगर अब रौज़ा कहाँ है?
(28.30)
जनाब रूक़ईया, उम्मे कुलसूम, ज़ैनबः आप तीनों की परवरिश जनाब रिसालत मआब स॰
और हज़रत ख़दीजा ने फ़रमाई थी, इसी वजह से बाज़ मोअर्रेख़ीन ने आपकी
क़ब्रों को ‘‘क़ुबूर बनाते रसूलुल्लाह’’ के नाम से याद किया है। रफ़त पाशा
ने भी इसी ग़लती की वजह से उन सब को औलादे पैग़म्बर क़रार दिया है वह लिखते
हैं। ‘‘अकसर लोगों की क़ब्रों को पहचानना मुश्किल है अलबत्ता कुछ
बुज़ुर्गान की क़ब्रों पर क़ुब्बा बना हुआ है, इन कु़ब्बादार क़ब्रों में
जनाब इब्राहीम, उम्मे कुलसूम, रूक़ईया, ज़ैनब वग़ैरा औलादे पैग़म्बर की
क़बे्रं हैं।
(31) शोहदाए ओहद
यूँ तो
मैदाने ओहद में शहीद होने वाले फ़क़त सत्तर अफ़राद थे मगर कुछ ज़्यादा
ज़ख़्मों की वजह से मदीने में आकर शहीद हुए। उन शहीदों को बक़ी में एक ही
जगह दफ़न किया गया जो जनाबे इब्राहीम की क़ब्र से तक़रीबन 20 मीटर की दूरी
पर है। अब फ़क़त इन शोहदा की क़ब्रों का निशान बाक़ी रह गया है।
(32) वाकि़या हुर्रा के शहीद
कर्बला में
इमाम हुसैन अलै0 की शहादत के बाद मदीने में एक ऐसी बग़ावत की आँधी उठी
जिससे यह महसूस हो रहा था कि बनी उमय्या के खि़लाफ़ पूरा आलमे इस्लाम उठ
खड़ा होगा और खि़लाफ़त तबदील हो जायेगी मगर मदीने वालों को ख़ामोश करने के
लिये यज़ीद ने मुस्लिम बिन उक़बा की सिपेह सालारी में एक ऐसा लश्कर भेजा
जिसने मदीने में घुस कर वो ज़ुल्म ढाये जिनके बयान से ज़बान व क़लम मजबूर
हैं। इस वाकि़ये में शहीद होने वालों को बक़ीअ में एक साथ दफ़न किया गया।
इस जगह पहले एक चहार दीवारी और छत थी मगर अब छत को ख़त्म करके फ़क़त छोटी
छोटी दीवारें छोड़ दी गई हैं।
(33) जनाब मुहम्मद बिन हनफि़या
आप हज़रत
अमीर के बहादुर साहबज़ाते थे। आपको अपनी मां के नाम से याद किया जाता है।
इमाम हुसैन अ॰ का वह मशहूर ख़त जिसमें आपने कर्बला की तरफ़ सफ़र की वजह
बयान की है, आप ही के नाम लिखा गया था। आपका इन्तिक़ाल 83 हि0 में हुआ और
बक़ी में दफ़न किया गया।
(34) जनाब जाबिर बिन अब्दुल्लाह अन्सारी
आप रिसालते
पनाह स॰ और हज़रत अमीर के जलीलुलक़द्र सहाबी थे। आँहज़रत स॰ की हिजरत से
15 साल पहले मदीने में पैदा हुए और आप स॰ के मदीना तशरीफ़ लाने से पहले
इस्लाम ला चुके थे। आँहज़रत स॰ ने इमाम बाक़र अ॰ तक सलाम पहुँचाने का
जि़म्मा आप ही को दिया था। आपने हमेशा एहले बैत की मुहब्बत का दम भरा। इमाम
हुसैन अ॰ की शहादत के बाद कर्बला का पहला ज़ाइर बनने का शर्फ आप ही को
मिला मगर जनाब हुज्जाम बिन यूसुफ़ सक़फ़ी ने मुहम्मद व आले मुहम्मद की
मुहब्बत के जुर्म में बदन को जलवा डाला था। आपका इन्तिक़ाल 77 हि0 में हुआ
और बक़ीअ में दफ़न हुए।
(35) जनाब मिक़दाद बिन असवद
हज़रत
रसूले ख़ुदा स॰ और हज़रत अली के बहुत ही मोअतबर सहाबी थे। आख़री लम्हे तक
हज़रत अमीर अ॰ की इमामत पर बाक़ी रहे और आपकी तरफ़ से दिफ़ा भी करते रहे।
इमाम मुहम्मद बाक़र अ॰ की रिवायत के मुताबिक़ आपकी गिन्ती उन जली-लु-लक़द्र
असहाब में होती है जो पैग़म्बरे अकरम स॰ की रेहलत के बाद साबित क़दम और
बाईमान रहे।
यह
था बक़ीअ में दफ़न होने वाले बाज़ बुज़ुर्गान का जि़क्र जिनके जि़क्र से
सऊदी हुकूमत बचती है और उनके आसार को मिटा कर उनका नाम भी मिटा देना चाहती
है क्योंकि उनमें से ज़्यादातर लोग ऐसे हैं जो जि़ंदगी भर मुहम्मद व आले
मुहम्मद अ॰ की मुहब्बत का दम भरते रहे और उस दुनिया की भलाई लेकर इस दुनिया
से गये। इन बुज़ुर्गान और इस्लाम के रेहनुमा की तारीख़ और जि़न्दगी ख़ुद
एक मुस्तकि़ल बहस है जिसकी गुन्जाइश यहाँ नहीं है।
आख़िर में हम रब्बे करीम से दुआ करते हैं। ख़ुदारा! मुहम्मद और आले
मुहम्मद अ॰ का वास्ता हमें इन अफ़राद के नक़शे क़दम पर चलने की तौफ़ीक़ अता
फ़रमा जो तेरे नुमाइन्दों के बावफ़ा रहे नीज़ हमें उन लोगों में क़रार दे
जो हक़ के ज़ाहिर करने में साबित क़दम रहे और जिनके इरादों को ज़ालिम
हाकिमें भी हिला न सके।
जन्नतुल बक़ीअ तारीख़े इस्लाम के जुमला मुहिम आसार में से एक है, जिसे
वहाबियों ने 8 शव्वाल 1343 मुताबिक़ मई 1925 को शहीद करके दूसरी कर्बला की
दास्तान को लिख कर अपने यज़ीदी किरदार और अक़ीदे का वाज़ेह तौर पर इज़हार
किया है।
क़ब्रिस्ताने बक़ीअ (जन्नतुल बक़ीअ) के तारीख़ को पढ़ने से मालूम होता है
कि यह मक़बरा सदरे इस्लाम से बहुत ही मोहतरम का मुक़ाम रखता था। हज़रत
रसूले ख़ुदा स॰ ने जब मदीना मुनव्वरा हिजरत की तो क़ब्रिस्तान बक़ीअ
मुसलमानों का इकलौता क़ब्रिस्तान था और हिजरत से पहले मदीना मुनव्वरा के
मुसलमान ‘‘बनी हराम’’ और ‘‘बनी सालिम’’ के मक़बरों में अपने मुर्दों को
दफ़नाते थे और कभी कभार तो अपने ही घरों में मुर्दों को दफ़नाते थे और
हिजरत के बाद रसूले ख़ुदा हज़रत मुहम्मद स॰ के हुक्म से बक़ीअ जिसका नाम
‘‘बक़ीउल ग़रक़द’’ भी है, मक़बरे के लिये मख़सूस हो गया।
जन्नतुल बक़ीअ हर एतबार से तारीख़ी, मुहिम और मुक़द्दस है। हज़रत रसूले
ख़ुदा स॰ ने जंगे ओहद के कुछ शहीदों को और अपने बेटे ‘‘इब्राहीम’’ अ॰ को भी
जन्नतुल बक़ीअ में दफ़नाया था। इसके अलावा मुहम्मद और आले मुहम्मद
सलावातुल्लाहे अलैइहिम अजमईन के मकतब यानी मकतबे एहले बैत अ॰ के पैरोकारों
के लिये बक़ीअ के साथ इस्लाम और ईमान जुड़े हुऐ हैं क्योंकि यहां पर चार
मासूमीन अलै0 दूसरे इमाम हज़रत हसन बिन अली अलैहिस्सलाम, चैथे इमाम हज़रत
अली बिन हुसैन ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम, पांचवें इमाम हज़रत मुहम्मद बिन
अली अलबाक़र अलैहिस्सलाम, और छटे इमाम हज़रत जाफ़र बिन सादिक़ अलैहिस्सलाम
के दफ़्न होने की जगह है।
इसके अलावा अज़वाजे रसूले ख़ुदा स॰ हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा स॰, और हज़रत
अली अ॰ की ज़ौजा, उम्मुल बनीन फ़ात्मा बिन्ते असद वालिदा मुकर्रमा अलमदार
कर्बला हज़रत अबुलफ़ज़्ल अलअब्बास अलै0, हज़रत के चचा ‘‘अब्बास’’ और कई
बुज़ुर्ग सहाबी हज़रात दफ़्न हैं।
तारीख़े इस्लाम का गहवारा ‘‘मक्का मुकर्रमा’’ और ‘‘मदीना मुनव्वरा’’ रहा
है जहाँ तारीखे इस्लाम की हैसिय्यत का एक मरकज़ है लेकिन वहाबियत के आने से
‘‘शिर्क’’ के उन्वान से बेमन्तक़ व बुरहान क़ुरआनी इन तमाम तारीख़ी
इस्लामी आसार को मिटाने का सिलसिला भी शुरू हुआ जिस पर आलमे इस्लाम में
मकतबे अहले बैत अलैहिमुस्सलाम, को छोड़ कर सभी मुजरिमाना ख़ामोशी इखि़्तयार
किये हुए हैं।
तारीख़ को पढ़ने और सफर करने वालों और सफ़रनामों से तारीख़े इस्लाम के
आसारे क़दीमा की हिफ़ाज़त और मौजूदगी का पता मिलता है अज़ जुमला जन्नतुल
बक़ी कि जिसकी दौरे वहाबियत तक हिफ़ाज़त की जाती थी और क़ब्रों पर कतीबा
लिखे पड़े थे जिसमें साहिबे क़ब्र के नाम व निशानी सब्त थे वहाबियों ने सब
महू कर दिया है। यहाँ तक कि अइम्मा मासूमीन अलैइहिमुस्सलाम की क़ब्रों पर
जो रौज़े तामीर थे उनको भी मुसमार कर दिया गया है।
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